Monday, April 8, 2019

संस्कृत व्याकरण नोट्स

                                 ओउम्
(नमस्कार दोस्तों मैं आचार्य सुरेन्द्र शास्त्री आपके संस्कृत की प्रत्येक परीक्षा के लिए व्याकरण नोट्स के अध्याय व्याकरण परिचय के नोट्स आसान और सरल शब्दों में प्रस्तुत कर रहा हूं आशा है कि आप इन्हें अच्छी तरह समझ पायेंगें)                       (अध्याय-1_व्याकरण-परिचय)
                        संस्कृत व्याकरण नोट्स
                      ( आसान और सरल शब्दों में)
                   संज्ञा प्रकरण
वेद के 6 अंगों में मुख स्वरूप सुशोभित सर्वश्रेष्ठ वेदागं व्याकरण ही है किसी भी भाषा का परिचय प्राप्त करने से पूर्व उसका व्याकरण अवश्य ज्ञातव्य है। व्याकरण वह शास्त्र है जिसमें प्रकृति प्रत्यय के विभाग के द्वारा साधु शब्दों का विवेचन किया जाता है। महाभाष्य में व्याकरण को शब्दानुशासन कहा गया है।
वेद के छह अंग निम्न हैं 
१.शिक्षा(शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य)
२.कल्प(हस्तौ कल्पोथपठ्यते)
३.व्याकरण(मुखं व्याकरणं स्मृतम्)
४.निरुक्त(निरुक्तं श्रोतमुच्यते)
५.छन्द(छन्दः पादौ तु वेदस्य)
६.ज्योतिष(ज्योतिषामयनं चक्षुः)
√ ध्वन्यालोक में आनंद वर्धन भी व्याकरण को जानने वालों की श्रेष्ठता संपादित करते हैं-" प्रथमे हि विद्वान्सो वैयाकरणाः , व्याकरण मूलतत्वात् सर्वविद्यानाम्"
 व्याकरण की परम्परा-
व्याकरण की परंपरा द्विमुखि या दो प्रकार की है - १.बार्हस्पति परंपरा और २. माहेश्वरी परंपरा।
√व्याकरण की बार्हस्पति परंपरा में कहा जाता है कि ब्रह्मा ने संपूर्ण व्याकरण शास्त्र का निर्माण करके बृहस्पति को बताया बृहस्पति ने इंद्र को तथा इंद्र ने यम,रुद्र, वायु, वरुण आदि को बताया अतः इस मत में इंद्र को प्रथम वैयाकरण माना जाता है तथा प्रथम प्रवक्ता वृहस्पति को माना जाता है।
इस बार्हस्पति परंपरा को कातंत्र नाम भी दिया जाता है क्योंकि यहां पर काठिन्य था।
√ माहेश्वरी परंपरा के अनुसार भगवान महेश्वर ही प्रथम वैयाकरण हुए हैं। कहा गया है कि माहेश्वर सूत्रों के माध्यम से पाणिनि को व्याकरण का ज्ञान हुआ अतः  इस परंपरा को पाणिनीय  परंपरा भी कहा जाता है। इस परंपरा को वर्तमान में अधिक तार्किक, मनोवैज्ञानिक एवं सर्वग्राह्य माना जाता है।
व्याकरण के त्रिमुनि-
पाणिनि कात्यायन (वररुचि)और पतंजलि को व्याकरण के त्रिमुनि कहा जाता है पाणिनि की कृति अष्टाध्यायी  कात्यायन के वार्तिक तथा पतंजलि के महाभाष्य को 'तदुक्ति' पद से सुशोभित किया गया है।
        त्रिमुनि                                तदुक्ति
  १.  पाणिनि                           १.अष्टाध्यायी
२.कात्यायन(वररुचि)                २.वार्तिक
३.पतञ्जलि                            ३.महाभाष्य
√इस त्रिमुनि में पाणिनि की अष्टाध्यायी संस्कृत व्याकरण की आधारस्तम्भ कृति है। पाणिनीय सूत्रों से बचे हुए विषय तथा कठिनता से कहे गये विषय का सरल उपस्थापन, कात्यायन(वररुचि )ने वार्तिकों के रुप में किया है अष्टाध्यायी और वार्तिकों पर विचार करके पाणिनीय सूत्रों की ही पुनः प्रामाणिकता स्थापित करने के लिए पतंजलि ने महाभाष्य लिखा ।
इस त्रिमुनि परंपरा में पतंजलि के मत को श्रेष्ठ माना गया है ।क्योंकि इसमें पुनः पाणिनि के मत को ही प्रामाणिक माना है ।पुनश्च , जो मुनि बाद में विषय का उपस्थापन करता है उसका मत प्रामाणिक माना जाता है कहा गया है कि "यथोत्तरं मुनिना प्रामाण्यम् ।
पाणिनि- (समय 500 ईसा पूर्व )जन्म- शालातुर, अध्ययन- तक्षशिला,
माता- दाक्षी           
पिता- पणिन्     
√-तदुक्ति- अष्टाध्यायी, ----दूसरा नाम शब्दानुशासनम्  आठ अध्याय, प्रत्येक अध्याय में चार पाद अतः कुल 32 पाद।
प्रथम सूत्र- वृद्धिरादैच्
अन्तिम सूत्र- अ अ ।
14 माहेश्वर सूत्र, लगभग-3978 सूत्र।
∆कात्यायन(वररुचि)-(समय 350 ईसा पूर्व )
√- तदुक्ति- वार्तिकम्(लगभग-1500सूत्रों पर 4000 से 5000 वार्तिक लिखी।
∆पतञ्जलि- (समय 200 ईसा पूर्व)
√- तदुक्ति- महभाष्यम्- कुल - 84/85आह्निक।(एक दिन में निवृत कार्य को आह्निक कहा जाता है अतः महाभाष्य को 84/85 दिनों में निर्मित ग्रंथ माना जाता है।
इस पर कैयट ने प्रदीप टीका, नागेश ने उद्योत टीका लिखी।
      अन्य व्याकरण ग्रन्थ

नारायण भट्ट - प्रक्रियासर्वस्वम्
विमल सूरी -रुपमाला
भट्टोजिदीक्षित - वैयाकरणसिद्धान्त कौमुदी
वरदराज - मध्यसिद्धान्तकौमुदी, लघुसिद्धान्तकौमुदी।
          व्याख्या ग्रन्थ
भट्टोजिदीक्षित - प्रोढमनोरमा
कौण्डभट्ट - वैयाकरणभूषणसार
नागेशभट्ट - लघुशब्देन्दुशेखरः , परिभाषेन्दुशेखरः ।
--------___________----------__________-----------.








No comments:

Post a Comment